जेस्टेशनल डायबिटीज (गर्भकालीन मधुमेह) के कारण, लक्षण और इलाज – Gestational Diabetes in Hindi

गर्भावस्था हर महिला के लिए एक खूबसूरत सफर के साथ चुनौतियों से भरा होता है। इस दौरान महिलाओं के शरीर में कई तरह के बदलाव होते हैं। इनमें से कुछ बदलाव तो ऐसे होते हैं जो शारीरिक समस्या से जुड़े हुए होते हैं। इन्हीं में से एक है गर्भकालीन मधुमेह, जिसके बारे में हम स्टाइलक्रेज के इस लेख में जानकारी लेकर आए हैं। यहां हम जेस्टेशनल डायबिटीज के कारण, लक्षण और इलाज के अलावा गर्भावस्था में मधुमेह से बचाव के तरीकों के बारे में भी बताएंगे।
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सबसे पहले समझ लेते हैं कि जेस्टेशनल डायबिटीज आखिर है क्या।
विषय सूची
जेस्टेशनल डायबिटीज (गर्भकालीन मधुमेह) क्या है – What is Gestational Diabetes in Hindi
जेस्टेशनल डायबिटीज यानी गर्भकालीन मधुमेह, एक प्रकार का मधुमेह ही है, जो प्रेगनेंसी के दौरान उन महिलाओं को होता है जिन्हें पहले से डायबिटीज की समस्या नहीं होती है। यह समस्या तब होती है जब प्रेगनेंसी के समय महिला के शरीर में इंसुलिन नामक हार्मोन पर्याप्त मात्रा में नहीं बन पाता है (1)। लेख में आगे हमने गर्भावस्था में मधुमेह के कारणों के बारे में विस्तार से बताया है।
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अब बारी आती है गर्भकालीन मधुमेह के लक्षणों के बारे में जानने की।
गर्भावस्था में मधुमेह (गर्भकालीन मधुमेह) के लक्षण – Symptoms of Gestational Diabetes in Hindi
अगर बात करें गर्भकालीन मधुमेह के लक्षणों की तो बता दें कि अधिकांश समय, इसके कोई लक्षण नहीं दिखाई देते हैं। हालांकि, कुछ मामलों में गर्भवती महिलाओं को अधिक प्यास लग सकती है या फिर कंपकंपी महसूस हो सकती है। आमतौर पर ये लक्षण गर्भवती महिलाओं के लिए जानलेवा नहीं होते हैं (2) ।
इन सब के अलावा गर्भकालीन मधुमेह के दौरान कुछ अन्य लक्षण भी दिखाई दे सकते हैं, जो इस प्रकार हैं (2) :
- थकान महसूस होना
- जल्दी जल्दी पेशाब आना
- बार-बार प्यास लगना
- योनि, मूत्राशय और स्किन पर संक्रमण होना
- धुंधला नजर आना
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गर्भकालीन मधुमेह के लक्षण जानने के बाद अब गर्भावस्था में मधुमेह के कारण पर नजर डालते हैं।
जेस्टेशनल डायबिटीज (गर्भकालीन मधुमेह) के कारण – Causes of Gestational Diabetes in Hindi
गर्भकालीन मधुमेह का मुख्य कारण होता है, गर्भवती महिला के शरीर में इंसुलिन नामक हार्मोन का पर्याप्त मात्रा में निर्माण न होना। दरअसल, इंसुलिन शरीर में ग्लूकोज को ऊर्जा में बदलने का का काम करता है। वहीं, गर्भावस्था के दौरान महिलाओं के शरीर में कई तरह के परिवर्तन होते हैं, जैसे वजन का बढ़ना, हार्मोन का निर्माण आदि। इन बदलावों के कारण कोशिकाएं इंसुलिन का उपयोग सही तरीके से नहीं कर पाती हैं, जिसके परिणामस्वरूप इंसुलिन प्रतिरोध की स्थिति उत्पन्न होने लगती है और इंसुलिन का स्तर बढ़ने लगता है (1)।
बता दें कि अधिकांश गर्भवती महिलाओं को इंसुलिन प्रतिरोध का सामना प्रसव के आखिरी महीनों में करना पड़ता है। जबकि कुछ महिलाओं में यह स्थिति गर्भावस्था से पहले भी देखी जा सकती है। ऐसे में इन महिलाओं को गर्भावस्था के शुरुआती दिनों से ही ज्यादा इंसुलिन की आवश्यकता हो सकती है। इस वजह से उन महिलाओं को गर्भकालीन मधुमेह होने का खतरा अधिक हो सकता है (1)।
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लेख के इस हिस्से में गर्भकालीन मधुमेह के जोखिम कारकों के बारे में जानिए।
जेस्टेशनल डायबिटीज (गर्भकालीन मधुमेह) के जोखिम कारक – Risk Factors of Gestational Diabetes in Hindi
गर्भकालीन मधुमेह के कारणों के अलावा इसके जोखिम कारकों पर भी ध्यान देना जरूरी है। आइए जानते हैं गर्भकालीन मधुमेह के जोखिम कारकों कौन-कौन से हैं (2) :
- 25 वर्ष से अधिक उम्र की गर्भवती महिलाएं।
- परिवार में अगर किसी को मधुमेह की समस्या रही हो।
- ऐसे बच्चे को जन्म देना जिसका वजन 4 किलो से अधिक रहा हो या फिर उसे जन्म दोष हो।
- हाई ब्लड प्रेशर की समस्या।
- एमनियोटिक द्रव (भ्रूण को चारों ओर से घेरे रहने वाला तरल पदार्थ) का बढ़ना।
- गर्भपात या मृत बच्चे का जन्म हुआ हो।
- गर्भावस्था से पहले अधिक वजन रहा हो।
- गर्भावस्था के दौरान बहुत अधिक वजन बढ़ गया हो।
- पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (इनफर्टिलिटी से जुड़ी समस्या) ।
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यहां हम गर्भकालीन मधुमेह के निदान के बारे में जानकारी देंगे।
जेस्टेशनल डायबिटीज (गर्भकालीन मधुमेह) का निदान – Diagnosis of Gestational Diabetes in Hindi
गर्भकालीन मधुमेह का निदान आमतौर पर गर्भावस्था के 24 से 28 सप्ताह के बीच किया जाता है। इसके लिए डॉक्टर सबसे पहले ब्लड टेस्ट की सलाह दे सकते हैं। इसके अलावा दो अन्य प्रकार के टेस्ट की भी सलाह दी जा सकती है, जो इस प्रकार है (3) :
ग्लूकोज चैलेंज टेस्ट : इस टेस्ट को ग्लूकोज स्क्रीनिंग टेस्ट के नाम से भी जाना जाता है। इसमें डॉक्टर महिलाओं को पहले ग्लूकोज युक्त मीठा पेय पदार्थ पीने को कहते है। फिर उसके एक घंटे बाद सैंपल के लिए खून लिया जाता है। इस टेस्ट के लिए भूखे रहने की जरूरत नहीं होती।
इस टेस्ट में अगर ब्लड शुगर लेवल 140 या उससे अधिक है तो ऐसे में डॉक्टर ओरल ग्लूकोज टॉलरेंस टेस्ट की सिफारिश कर सकता है। वहीं, अगर ब्लड ग्लूकोज का स्तर 200 या उससे अधिक है, तो यह टाइप 2 मधुमेह की ओर संकेत करता है।
ओरल ग्लूकोज टॉलरेंस टेस्ट : इस टेस्ट को करने से पहले महिलाओं को कम से कम 8 घंटे का उपवास करना होता है। इसके बाद डॉक्टर खून का नमूना लेता है और फिर ग्लूकोज युक्त तरल पदार्थ पीने की सलाह दे सकता है।
इस टेस्ट में अलग-अलग समय पर तीन बार खून का नमूना लेकर ग्लूकोज के स्तर की जांच की जाती है। अगर लिए गए नमूनों में से किसी दो या उससे अधिक में ग्लूकोज का स्तर ज्यादा पाया जाता है, तो डॉक्टर जेस्टेशनल डायबिटीज होने की पुष्टि करता है।
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निदान के बाद अब बारी आती है गर्भकालीन मधुमेह के उपचार के बारे में जानने की।
जेस्टेशनल डायबिटीज (गर्भकालीन मधुमेह) का इलाज – Treatment of Gestational Diabetes in Hindi
गर्भकालीन मधुमेह के उपचार का मुख्य उद्देश्य होता है, ग्लूकोज के स्तर को सामान्य करना और इस बात को सुनिश्चित करना कि गर्भ में पल रहा बच्चा स्वस्थ है (2)। नीचे जानें गर्भकालीन मधुमेह का इलाज:
- स्वस्थ खान पान : गर्भकालीन मधुमेह के उपचार करने के लिए डॉक्टर सबसे पहले गर्भवती महिला और उसके बच्चे के लिए एक हेल्दी डाइट प्लान तैयार कर सकता है। इसकी मदद से महिलाओं को यह जानने में मदद मिलेगी कि कौने-कौने से खाद्य पदार्थों का सेवन उन्हें कितनी मात्रा में और कब करना है। ब्लड शुगर लेवल को नियंत्रित करने के लिए इसे महत्वपूर्ण माना गया है (4)।
- शारीरिक गतिविधि : शारीरिक गतिविधि के जरिए भी ब्लड शुगर लेवल को नियंत्रित करने में मदद मिल सकती है। इसके लिए डॉक्टर गर्भावस्था के दौरान किए जाने वाले एक्सरसाइज के बारे में बता सकते हैं। इन शारीरिक गतिविधियों को सप्ताह में 5 दिन, 30 मिनट तक करने की सलाह दी जा सकती है। बता दें कि शारीरिक गतिविधि हाई ब्लड प्रेशर या फिर हाई कोलेस्ट्रॉल लेवल को भी नियंत्रित करने में मदद कर सकती है। इसके अलावा शारीरिक रूप से सक्रिय रहने से टाइप 2 मधुमेह होने के जोखिमों को भी कम किया जा सकता है(4)।
अगर स्वस्थ खान पान और शारीरिक रूप से सक्रिय रहने के बावजूद भी गर्भकालीन मधुमेह के उपचार में मदद नहीं मिलती है तो ऐसे में डॉक्टर इंसुलिन लेने और दवाइयों के सेवन की सलाह दे सकते हैं (4)।
- इंसुलिन : ब्लड शुगर लेवल को नियंत्रित करने के लिए डॉक्टर इंसुलिन की सलाह दे सकते हैं। साथ ही डॉक्टर इंसुलिन इंजेक्शन लेने की प्रक्रिया को भी सामझाएंगे। बता दें कि इंसुलिन से बच्चे को किसी प्रकार का नुकसान नहीं पहुंचता (4)।
- दवाइयों का सेवन : जेस्टेशनल डायबिटीज के इलाज के लिए डॉक्टर मधुमेह की दवाओं के सेवन की भी सलाह दे सकते हैं। हालांकि इसके सुरक्षात्मक प्रभाव को लेकर अभी और शोध किए जाने की आवश्यकता है(4)।
अभी बाकी है जानकारी
अब हम बात करेंगे जेस्टेशनल डायबिटीज में किन चीजों का सेवन करना सही है और किन चीजों का गलत।
गर्भकालीन मधुमेह में क्या खाना चाहिए – क्या नहीं – Gestational Diabetes Diet in Hindi
गर्भावस्था के दौरान मधुमेह की समस्या से बचने के लिए खान पान पर विशेष ध्यान देना जरूरी है। इसलिए यहां हम गर्भावस्था शुगर से बचाव के लिए बता रहे हैं कि गर्भकालीन मधुमेह में क्या खाना चाहिए और क्या नहीं (2) :
इन चीजों का करें सेवन :
- साबुत अनाज की ब्रेड
- दलिया
- साबुत अनाज, जैसे – जौ या ओट्स
- फलियां
- ब्राउन राइस का सेवन
- गेहूं का पास्ता
- स्टार्च वाली सब्जियां, जैसे-मकई और मटर का उपयोग
- गहरे हरे और गहरे पीले रंग की सब्जियां, जैसे- पालक , ब्रोकोली, गाजर, और मिर्च का सेवन
- जूस के बजाय फाइबर युक्त ताजे फल, जैसे – संतरा, अंगूर, और नारंगी (किनू)।
- कैनोला तेल, जैतून का तेल, मूंगफली का तेल और कुसुम का तेल।
- एवोकाडो, जैतून और नट्स का सेवन
- लो-फैट या बिना फैट वाली दूध या दही का उपयोग
- मछली और मांस का सेवन।
इन चीजों से करें परहेज :
- आलू का सेवन
- फ्रेंच-फ्राई
- सफेद चावल
- कैंडी, सोडा और अन्य मिठाई
- मीठी दही
- हाई सैचुरेटेड फैट या हाई फैट, जैसे -हैमबर्गर, चीज, बेकन और मक्खन का उपयोग
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लेख के अंत में गर्भावस्था में मधुमेह से बचने के उपाय के बारे में जानते हैं।
गर्भावस्था में मधुमेह (गर्भकालीन मधुमेह) से बचने के उपाय – Prevention Tips for Gestational Diabetes in Hindi
गर्भावस्था के दौरान अगर थोड़ी सी सावधानी बरती जाए तो, इस समस्या से आसानी से बचा जा सकता है। इसलिए यहां हम उन्हीं टिप्स के बारे में बताने जा रहे हैं, जिनकी मदद से गर्भकालीन मधुमेह से बचाव किया जा सकता है:
- वजन नियंत्रण : जैसा कि हमने लेख में बताया कि जिन महिलाओं का वजन बढ़ा हुआ होता है, उन्हें गर्भकालीन मधुमेह होने का जोखिम अधिक होता है (2)। ऐसे में वजन को नियंत्रित रखकर इस समस्या से बचाव किया जा सकता है।
- स्वस्थ आहार: जेस्टेशनल डायबिटीज से बचने के लिए स्वस्थ आहार बेहद जरूरी माना गया है। इस स्थिति में कम फैट और फाइबर युक्त भोजन का सेवन करने की सिफारिश की जाती है। जबकि अधिक कार्बोहाइड्रेट के सेवन से परहेज करने की सलाह दी जाती है, क्योंकि यह ब्लड शुगर को बढ़ा सकता है (2)।
- एक्सरसाइज : हफ्ते में तीन से चार दिन कम से कम 30 मिनट एक्सरसाइज करने से ब्लड शुगर के स्तर को कम करने में मदद मिल सकती है। इसके लिए स्विमिंग, साइकलिंग, वॉकिंग जैसे एक्सरसाइज किए जा सकते हैं (5)।
- डॉक्टर से संपर्क : गर्भावस्था के दौरान समय-समय पर अपने डॉक्टर से मिलते रहें। खासकर गर्भावस्था के 24 से 28 वें सप्ताह में। इसे गर्भावधि मधुमेह के बारे में पता लगाने में मदद मिल सकती है (2)।
आमतौर पर गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को जेस्टेशनल डायबिटीज के बारे में पता नहीं चल पाता, जो उनके लिए खतरनाक हो सकता है। ऐसे में जरूरी है कि लेख में बताए गए गर्भकालीन मधुमेह के लक्षणों को ध्यान में रखें, ताकि समय रहते गर्भावस्था में मधुमेह से बचा जा सके। इसके लिए हमने लेख में गर्भावस्था शुगर से बचाव के कुछ टिप्स भी दिए है, जिन्हें अपनाना फायदेमंद हो सकता है।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
अगर जेस्टेशनल डायबिटीज हो जाए तो क्या समस्याएं हो सकती हैं?
जेस्टेशनल डायबिटीज होने पर मां और बच्चे दोनों को नुकसान पहुंच सकता है। एक तरफ मां को जहां, हाई ब्लड प्रेशर, प्रीक्लेम्पसिया (उच्च रक्तचाप संबंधी विकार), मधुमेह की समस्या और सिजेरियन डिलीवरी का खतरा बढ़ जाता है। तो वहीं, दूसरी तरफ नवजात शिशु को भी लो ब्लड शुगर, सांसों से संबंधी समस्या, कैल्शियम की कमी जैसी समस्याएं हो सकती हैं (6)।
क्या जेस्टेशनल डायबिटीज में पानी पीना मददगार हो सकता है?
हां, पानी पीना गर्भकालीन मधुमेह में मदद कर सकता है। एक शोध से जानकारी मिलती है कि पानी पीने से ब्लड शुगर लेवल के बढ़ने का खतरा कम हो सकता है (7)। ऐसे में यह माना जा सकता है कि जेस्टेशनल डायबिटीज में पानी पीना लाभकारी हो सकता है।
क्या गर्भकालीन मधुमेह में नींबू पानी मदद करता है?
हां, गर्भकालीन मधुमेह में नींबू पानी मदद कर सकता है। दरअसल, एक शोध से जानकारी मिलती है कि नींबू में एंटीडायबिटिक गुण यानी ब्लड शुगर को कम करने के गुण मौजूद होते हैं (8)। ऐसे में पानी के साथ जूस के रूप में नींबू का सेवन लाभकारी हो सकता है। बता दें कि गर्भावस्था में नींबू पानी को सुरक्षित माना गया है (9)।
क्या गर्भकालीन मधुमेह के लिए दूध हानिकारक है?
नहीं, गर्भकालीन मधुमेह में दूध का सेवन हानिकारक नहीं होता है, बशर्ते वह कम फैट या बिना फैट वाला दूध हो (2)।
क्या गर्भकालीन मधुमेह बच्चे को अधिक एक्टिव बनाता है?
नहीं, गर्भकालीन मधुमेह बच्चे के मस्तिष्क विकास को धीमा करता है(10)। ऐसी स्थिति में बच्चा अधिक एक्टिव नहीं हो पाता है।
संदर्भ (Sources):
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- Gestational Diabetes
https://www.cdc.gov/diabetes/basics/gestational.html - Gestational diabetes
https://medlineplus.gov/ency/article/000896.htm - Tests & Diagnosis for Gestational Diabetes
https://www.niddk.nih.gov/health-information/diabetes/overview/what-is-diabetes/gestational/tests-diagnosis - Managing & Treating Gestational Diabetes
https://www.niddk.nih.gov/health-information/diabetes/overview/what-is-diabetes/gestational/management-treatment - What can help prevent gestational diabetes?
https://www.ncbi.nlm.nih.gov/books/NBK441575/ - Gestational Diabetes
https://www.ncbi.nlm.nih.gov/books/NBK545196/#article-22231.s11 - Low water intake and risk for new-onset hyperglycemia
https://pubmed.ncbi.nlm.nih.gov/21994426/ - Evaluation of In-vitro Antidiabetic and Hypolipidemic Activities of Extracts Citrus Lemon Fruit
http://davidpublisher.com/Public/uploads/Contribute/58ca4f11a4083.pdf - An Evaluative Study To Assess The Effectiveness Of Lemon Juice On Pregnancy Induced Hypertension Among Antenatal Mothers In Dommasandra Phc, Bangalore.
https://www.academia.edu/35967058/AN_EVALUATIVE_STUDY_TO_ASSESS_THE_EFFECT - Gestational Diabetes Impairs Human Fetal Postprandial Brain Activity
https://pubmed.ncbi.nlm.nih.gov/26465393/